Wednesday, December 30, 2009
6:07 AM |
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Dr. Sohan Lal Yadav Chief Consultant(N&Y) IIT KANPUR |
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गोरा बनें -मुहांसे हटाए सौन्दर्य बढ़ाए
सौन्दर्यवर्धक पाउडर-प्रदूषण,खान पान
सौन्दर्यवर्धक पाउडर-प्रदूषण,खान पान
Monday, December 14, 2009
6:30 AM |
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Dr. Sohan Lal Yadav Chief Consultant(N&Y) IIT KANPUR |
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१) हरीरा पाउडर-(कोलाइटिस की दवा ) पके बेल ,ईसबगोल की भूसी और सौंठ के योग से बनी यह दिव्य औषधि कोलाइटिस के पुराने से पुराने रोग को समूल नष्ट करती हैं !बार-बार दस्त आना,आँव आना,मरोड़,पतले झागदार दस्त,कीचड़ जैसे दस्त की समस्या को दूर करने हेतु रामबाण औषधि हैं !
२) उदर शोधक चूर्ण- (पेट तथा आँतो को साफ करने की दवा ) यह हानि रहित,आदत न डालने वाली अद्वितीय कल्याणकारी प्रद औषधि हैं !जो हर घर परिवार के लिए आवश्यक हैं !यह चूर्ण पुराने से पुराने कष्टकारी कब्ज,आँतो में फसे हुए मल को बाहर लाने,गैस,आँव,एसिडिटी बवासीर के रोगी को तुरन्त लाभ देकर ताजगी,स्फूर्ति प्रदान करके रोग मुक्त प्रदान करने का एक मात्र प्राकृतिक औषधि हैं !
३) अर्जुनत्वक चूर्ण- (हृदय रोगियों के लिए )हृदय रोगियों के लिए ,उच्चरक्तचाप,घबराहट,हृदय की कमजोरी,साँसफूलना व दिल की धड़कन का तेज होना आदि रोगों के निदान में हजारो बर्षो से सुप्रसिध्द गुणकारी व श्रेष्ठ औषधि हैं !
४) अमृत पेय- प्रकृति की गोद में स्वास्थ्य के लिय सर्दी,जुकाम,खाँसी,लगातार छीके आना,कफ की सिकायत होना,मानसिक तनाव,भारीपन,चिडचिडापन,गुस्सा, जल्दी-जल्दी बुखार आना, कमजोरी लगना किसी काम में मन न लगना,दिन में भी सोने की इच्छा होना,शरीर में अकडन, दर्द,आलसपन,तुरन्त नष्ट करने वाली हैं !शरीर को स्वस्थ सबल निरोगी रखने के लिय अनोखी क्षमता इस पेय में हैं!
२) उदर शोधक चूर्ण- (पेट तथा आँतो को साफ करने की दवा ) यह हानि रहित,आदत न डालने वाली अद्वितीय कल्याणकारी प्रद औषधि हैं !जो हर घर परिवार के लिए आवश्यक हैं !यह चूर्ण पुराने से पुराने कष्टकारी कब्ज,आँतो में फसे हुए मल को बाहर लाने,गैस,आँव,एसिडिटी बवासीर के रोगी को तुरन्त लाभ देकर ताजगी,स्फूर्ति प्रदान करके रोग मुक्त प्रदान करने का एक मात्र प्राकृतिक औषधि हैं !
३) अर्जुनत्वक चूर्ण- (हृदय रोगियों के लिए )हृदय रोगियों के लिए ,उच्चरक्तचाप,घबराहट,हृदय की कमजोरी,साँसफूलना व दिल की धड़कन का तेज होना आदि रोगों के निदान में हजारो बर्षो से सुप्रसिध्द गुणकारी व श्रेष्ठ औषधि हैं !
४) अमृत पेय- प्रकृति की गोद में स्वास्थ्य के लिय सर्दी,जुकाम,खाँसी,लगातार छीके आना,कफ की सिकायत होना,मानसिक तनाव,भारीपन,चिडचिडापन,गुस्सा, जल्दी-जल्दी बुखार आना, कमजोरी लगना किसी काम में मन न लगना,दिन में भी सोने की इच्छा होना,शरीर में अकडन, दर्द,आलसपन,तुरन्त नष्ट करने वाली हैं !शरीर को स्वस्थ सबल निरोगी रखने के लिय अनोखी क्षमता इस पेय में हैं!
Monday, November 23, 2009
6:33 AM |
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Dr. Sohan Lal Yadav Chief Consultant(N&Y) IIT KANPUR |
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३) आसनों की शास्त्रोक्त ब्याख्या
योगशास्त्रो में आसन चौरासी लाख बताये गये हैं उसमे भी प्रमुख चौरासी हजार हैं !चौरासी हजार आसनों में भी प्रधान चौरासी सौ हैं !उसमे प्रमुख चौरासी हैं !इन चौरासी आसनों में भी प्रमुख ३२ हैं और इन बत्तीस आसनों में भी प्रमुख ११ ,९ या ८ आसन हैं !इसमे प्रमुख चार आसन हैं ,इन चार में भी प्रमुख दो आसन बताये गये हैं ,और इन दो आसनों में भी एक आसन प्रमुख हैं !चौरासी लाख आसन तो साक्षात् शंकर जी ही जानते हैं ,जिनसे योग की उत्पत्ति हुई हैं !साधानातया प्रचलित आसन १०८ या ३२ हैं !इन चौरासी आसनों में भी जो प्रधान ३२ आसन हैं उनके बारे में घेरंड ऋषी ने कुछ इस प्रकार कहा हैं - आसनानि समस्तानि यावन्तो जीवजन्तव!
योगशास्त्रो में आसन चौरासी लाख बताये गये हैं उसमे भी प्रमुख चौरासी हजार हैं !चौरासी हजार आसनों में भी प्रधान चौरासी सौ हैं !उसमे प्रमुख चौरासी हैं !इन चौरासी आसनों में भी प्रमुख ३२ हैं और इन बत्तीस आसनों में भी प्रमुख ११ ,९ या ८ आसन हैं !इसमे प्रमुख चार आसन हैं ,इन चार में भी प्रमुख दो आसन बताये गये हैं ,और इन दो आसनों में भी एक आसन प्रमुख हैं !चौरासी लाख आसन तो साक्षात् शंकर जी ही जानते हैं ,जिनसे योग की उत्पत्ति हुई हैं !साधानातया प्रचलित आसन १०८ या ३२ हैं !इन चौरासी आसनों में भी जो प्रधान ३२ आसन हैं उनके बारे में घेरंड ऋषी ने कुछ इस प्रकार कहा हैं - आसनानि समस्तानि यावन्तो जीवजन्तव!
चतुशीतिलक्षाणि शिवेन कथितं पुरा !!१!!
तेषां मद्ये विशिष्टानि षोड़शोनं शतं कृतम!
तेषां मध्ये मर्त्यलोके द्वात्रिशंदासनं शुभम!!२!!
अर्थात इस प्रथ्वी पर जितने जीवजन्तु हैं ,उतने ही प्रकार के आसन हैं !शास्त्रकारो ने चौरासी लाख योनियाँ बताई हैं !इन चौरासी लाख योनियों के आधार पर ही शंकर भगवान ने चौरासी लाख आसनों को बताया हैं !उसमे से चौरासी सौ मुख्य हैं और उसमे से चौरासी आसन मुख्य बताये गये हैं और उसमे से जो बत्तीस आसन प्रमुख बताये गये हैं वे इस प्रकार हैं :
अर्थात १ सिध्दासन,२ पदमासन,३ भद्रासन, ४मुक्तासन ,५ बज्रासन ,६ स्वस्तिकासन ,७ सिंहासन ,८ गोमुखासन,९वीरासन ,१० धनुरासन ,१० मृतासन ,११ गुप्तासन ,१२ मत्स्यासन ,१४ मत्स्येन्द्रासन ,१५ गोरक्षासन ,१६ पश्चिमोत्तान,१७ उत्कटान,१८संकटान,१९ मयूरासन,२० कुक्कुटासन ,२१ कूर्मासन,२२ उत्तानकूर्मासन,२३ उत्तानमंडूकासन,२४ वृक्षासन,२५ मण्डूकासन,२६ गरुड़ासन,२७ ब्रिषभासन,२८ शलभासन ,२९ मकरासन ,३० उष्ट्रासन ,३१ भुजंगासन और३२ योगासन !ये बत्तीस आसन मनुष्य लोक के लिए सिद्धि देने वाले हैं !इन बत्तीस आसनों में भी मुख्य रूप से ११ आसन बताये गये हैं !उनका विधान गोरक्षनाथ जी के शिष्य स्वात्माराम जी हठयोग-प्रदीपिका में इस प्रकार लिखते हैं :
१ सिद्धासन ,२ पदमासन ,३ गोमुखासन ,४ वीरासन ,५ कुक्कुटासन ,६ उत्तानकूर्मासन,७ धनुरासन ,८ मत्स्येन्द्रासन ,९ पश्चिमोत्तानासन , १०मयूरासन ,और ११शवासन !योगतत्वोपनिषत में कहा गया हैं कि प्रमुख आसन चार हैं :-
सिद्धं पदमं तथा सिंहं भद्रं च तच्च्त !(योगतत्तोपनिषद)
अर्थात सिध्दासन ,पदमासन ,सिंहासन और भद्रासन!
योगकुन्दल्लूपनिषत में इन मुख्य चार आसनों में भी प्रमुख दो आसन बताये गये हैं :-आसनं द्विविधं प्रोक्तं पदमं वज्रासनं तथा !
(योगकुन्दल्लूपनिषत) अर्थात ये दो आसन पदमासन और बज्रासन हैं !बज्रासन का मतलब यहाँ सिध्दासन से हैं !योगी लोग सिध्दासन को बज्रासन के नाम से पुकारते हैं !आमतौर से यह नाम ऊँचे योगियों में प्रचलित हैं !
योगकुन्दल्लूपनिषत में भी उपर्युक्त श्लोक की पूर्ति के लिए लिखा हैं :-
एकं सिध्दासनं प्रोक्तं द्वितीयं कमलासनम !
शटचक्र षोडशाधारं त्रिलक्ष्य व्योमपंचकम !!३!!
स्वदेहे यो न जानाति तस्य सिध्दि कथं भवेत !!४! (योगचडामणयुपनिषद) अर्थात सिध्दासन ,कमलासन ,छः चक्र ,सोलह आधार ,तीन लक्ष्य और पाँच प्रकार के आकाश (घटाकाश ,मठाकाश,महाकाश ,चिदाकाश ,और परमाकाश) जो शारीर में बिध्दमान हैं ,इनको जो नहीं जानता उसे सिध्दि कैसे मिल सकती हैं!
यहाँ पर पदमासन को कमलासन बताया गया हैं !
उसी प्रकार से योगचडामणयुपनिषद में सिध्दिआसन को वज्रासन कहा गया हैं!
योगशास्त्रों में सिध्दि आसन को वज्रासन और पदमासन को कमलासन के नाम से पुकारा हैं गया हैं !इस लिए साधक लोग भ्रम में ण पड़े !इन दो आसनों में भी एक प्रमुख आसन माना गया हैं !वह चौरासी लाख आसनों का राजा हैं !हठयोग -प्रदीपिका में इसके लिए बताया गया हैं :-
यहाँ पर पदमासन को कमलासन बताया गया हैं !
उसी प्रकार से योगचडामणयुपनिषद में सिध्दिआसन को वज्रासन कहा गया हैं!
योगशास्त्रों में सिध्दि आसन को वज्रासन और पदमासन को कमलासन के नाम से पुकारा हैं गया हैं !इस लिए साधक लोग भ्रम में ण पड़े !इन दो आसनों में भी एक प्रमुख आसन माना गया हैं !वह चौरासी लाख आसनों का राजा हैं !हठयोग -प्रदीपिका में इसके लिए बताया गया हैं :-
नासनं सिध्दसदृशं न कुम्भः केवलोपम: ! न खेचरी-समा मुद्रा न नाद्सदृशो(हठयोग -प्रदीपिका)
अर्थात सिध्दासन के समान कोई आसन नही हैं !केवल कुम्भक के सामान कोई कुम्भक नही हैं ! खेचरी के सामान कोई मुद्रा नहीं हैं ,और नाद के सामान मन को लय करने वाली कोई चीज नहीं हैं योगशास्त्रों में योग की चरम सीमा पर पहुँचने के लिए या शरीर को निरोग यवं स्वस्थ बनाने के लिए आसनों को इतना महत्व दिया गया हैं की इन्हे छोड़कर न हम रोग दूर कर सकते हैं और न स्वस्थ लाभ कर सकते हैं !बिना आसन के योग में जो सबसे महत्व की चीज समाधि बताई गई हैं उसे भी प्राप्त नही कर सकते !जाबालदर्शनोंपनिषत में बताया गया हैं कि:-
आसनं विजितं येन जितं तेंन जगत्रयम !!अनेन विधिना युक्ता प्राणायामं सदा कुरू !! (जाबालदर्शनोंपनिषत)
अर्थात जिसने आसन को जीत लिया हैं उसने तीनो लोको को जीत लिया हैं १एसि प्रकार बिधि-विधान से प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए !तीन घंटा अड़तालिस मिनट एक आसन पर बैठने से आसन सिध्दि हो जाता हैं हठयोग-प्रदीपिका में कहा गया हैं कि :-
अथासने दृणे योगी वशी हितमिताशनः !!
गुरूपदिष्टमार्गेण प्राणामान्समभ्यसेत (हठयोग-प्रदीपिका )
अर्थात निश्चल सुखपूर्वक बैठने का नाम आसन हैं!इसका यह तात्पर्य हैं कि साधक आसन की सिध्दि को प्राप्त करे !अर्थात जब आसन की सिध्दि हो जाती हैं तब साधक निश्चल भाव से बिना हिले डुले सुख-पूर्वक अर्थात बिना कुछ कष्ट अनुभव किये ही बहुत समय तक जिस आसन पर बैठकर आसानी से योग का अभ्यास कर सके उसे ही "स्थिरसुखमासनम" कहते हैं !उपर्युक्त आसन
की पुष्टि की लिए महर्षि पतंजलि ने अपने अगले सूत्र में इस प्रकार कहा हैं !प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम !! ( " पातज्जलयोगदर्शन")
अर्थात प्रयत्न की शिथिलता से और अनन्त में मन लगाने से आसन सिध्द होता हैं !जब आसन की पूर्ण-रूपेण सिध्दि हो जाती हैं ,तब उस योगी की सम्पूर्ण बाह्य चेष्टा स्वतः ही शिथिल अर्थात धीरे धीरे समाप्त हो जाती हैं !यह भी पूर्ब सूत्र के आशय का प्रतिपादन करता हैं !यह सूत्र आसन के द्वारा अर्थात आसन की सिध्दि होने पर समाधि तक पहुंचाने का संकेत करता हैं!क्यों कि महर्षि पतंजलि ने अगले सूत्र में इसे स्पष्ट किया हैं :- ततो द्वान्द्वान्भिघातः ! ("पातज्जलयोगदर्शन")
अर्थात इस आसन की सिध्दि से शीत,उष्ण आदि द्वन्दों का नहीं लगता अर्थात आसन सिध्दि हो जाने से शरीर पर सर्दी गर्मी आदि द्वन्दों का प्रभाव नहीं पड़ता !इसका तात्पर्य यह हैं कि शरीर में इन सभी द्वन्दों को सहने की शक्ति प्राप्त हो जाती हैं !क्यों कि यही बाह्य द्वंद्व चित्त को चंचल करके साधन में बिघ्न डालकर मन को भी चंचल करता हैं इन सभी तीनो सूत्रों का तात्पर्य यह हैं कि आसन कि सिध्दि होने पर ही योगी समाधि को प्राप्त करता हैं !
योगी चरणदास जी ने बताया हैं कि : आसन प्राणायाम करि, पवन पंथ गहि लेही !
षट चक्कर को भेद करि ,ध्यान शून्य मन देहि !!(भक्ति सागर)
अर्थात आसन और प्राणायाम करके पवन के मार्ग को वश में कर लेना चाहिए और षट चक्र को भेदन करके मन को शून्य में लगा देना चाहिए !गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को योग का आदेश देते हुए योगी पुरुष को किस प्रकार योग के द्वारा अपने मन को वश में करना चाहिए यह कहा हैं -
योगी युंजीत सततमात्मानं रहसि स्थितः !
एकाकी यत-चित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः!! ( भगवद गीता ) अर्थात योगारूढ़ पुरुष आशओं और परिग्रह को छोड़कर शरीर और चित्त दोनों को स्वाधीन करके एकांत में अकेला होकर सदा मन को एकाग्र करे !आगे और भी बताया गया हैं!
डॉ. एस.एल. यादव
मुख्य चिकित्सक
सेंटर फॉर नेचुरोपैथी एंड योग टेक्नोलाँजी
आई. आई. टी. कानपुर
Sunday, November 22, 2009
2:31 AM |
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१) यम- पाँच सामाजिक नैतिकता !
यम पाँच हैं - १. अहिंसा २. सत्य ३. आस्तेय ४. ब्रम्हचर्य ५ अपरिग्रह
अहिंसा - शब्दों से ,विचरों से और कर्मो से किसी को हानि न पहुँचाना !
सत्य - विचरों में सत्यता ,परम सत्य में स्थित रहना !
आस्तेय- चोर प्रब्रृति का न होना !
ब्रम्हचर्य - इसके दो अर्थ हैं !
*चेतना को ब्रम्हा के ज्ञान मे स्थिर करना !
*सभी इंद्रिय -जनित सुखो में संयम बरतना !
अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक धन का संचय न करना और दूसरो की बस्तुओ की इच्छा न करना!
यम पाँच हैं - १. अहिंसा २. सत्य ३. आस्तेय ४. ब्रम्हचर्य ५ अपरिग्रह
अहिंसा - शब्दों से ,विचरों से और कर्मो से किसी को हानि न पहुँचाना !
सत्य - विचरों में सत्यता ,परम सत्य में स्थित रहना !
आस्तेय- चोर प्रब्रृति का न होना !
ब्रम्हचर्य - इसके दो अर्थ हैं !
*चेतना को ब्रम्हा के ज्ञान मे स्थिर करना !
*सभी इंद्रिय -जनित सुखो में संयम बरतना !
अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक धन का संचय न करना और दूसरो की बस्तुओ की इच्छा न करना!
२) नियम- पाँच व्यक्तिगत नैतिकता ! नियम भी पाँच हैं १. शौच २. संतोष ३. तप ४. स्वाध्याय ५. ईश्वर प्रादिधान
शौच - शरीर-और मन की शुद्धि!
संतोष- संतुष्ट और प्रसन्न रहना !
तप- स्वयं में अनुशासित रहना !
स्वाध्याय -आत्मचिंतन करना !
ईश्वर प्रादिधान-ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण ,पूर्ण श्रद्धा !
शौच - शरीर-और मन की शुद्धि!
संतोष- संतुष्ट और प्रसन्न रहना !
तप- स्वयं में अनुशासित रहना !
स्वाध्याय -आत्मचिंतन करना !
ईश्वर प्रादिधान-ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण ,पूर्ण श्रद्धा !
३) आसन
योगशास्त्रो में आसन चौरासी लाख बताये गये हैं उसमे भी प्रमुख चौरासी हजार हैं !चौरासी हजार आसनों में भी प्रधान चौरासी सौ हैं !उसमे प्रमुख चौरासी हैं !इन चौरासी आसनों में भी प्रमुख ३२ हैं और इन बत्तीस आसनों में भी प्रमुख ११ ,९ या ८ आसन हैं !इसमे प्रमुख चार आसन हैं ,इन चार में भी प्रमुख दो आसन बताये गये हैं ,और इन दो आसनों में भी एक आसन प्रमुख हैं !चौरासी लाख आसन तो साक्षात् शंकर जी ही जानते हैं ,जिनसे योग की उत्पत्ति हुई हैं !साधानातया प्रचलित आसन १०८ या ३२ हैं !इन चौरासी आसनों में भी जो प्रधान ३२ आसन हैं उनके बारे में घेरंड ऋषी ने कुछ इस प्रकार कहा हैं -
योगशास्त्रो में आसन चौरासी लाख बताये गये हैं उसमे भी प्रमुख चौरासी हजार हैं !चौरासी हजार आसनों में भी प्रधान चौरासी सौ हैं !उसमे प्रमुख चौरासी हैं !इन चौरासी आसनों में भी प्रमुख ३२ हैं और इन बत्तीस आसनों में भी प्रमुख ११ ,९ या ८ आसन हैं !इसमे प्रमुख चार आसन हैं ,इन चार में भी प्रमुख दो आसन बताये गये हैं ,और इन दो आसनों में भी एक आसन प्रमुख हैं !चौरासी लाख आसन तो साक्षात् शंकर जी ही जानते हैं ,जिनसे योग की उत्पत्ति हुई हैं !साधानातया प्रचलित आसन १०८ या ३२ हैं !इन चौरासी आसनों में भी जो प्रधान ३२ आसन हैं उनके बारे में घेरंड ऋषी ने कुछ इस प्रकार कहा हैं -
४) प्राणायाम
५) प्रत्याहार
६) धारणा
७) ध्यान
८) समाधि
1:46 AM |
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Dr. Sohan Lal Yadav Chief Consultant(N&Y) IIT KANPUR |
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बिधि -सिंहासन करने के लिए सबसे पहिले खड़े होकर दोनों एडियो को मिलकर दोनों पैर के पंजे खोल देते है फिर एडियों को उठाकर
पंजे के सहारे एडियों पर बाथ
पंजे के सहारे एडियों पर बाथ
12:37 AM |
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Dr. Sohan Lal Yadav Chief Consultant(N&Y) IIT KANPUR |
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याददास्त बढ़ाने वाले आसन
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