Tuesday, January 26, 2010
 भुजंगासन 
इस आसन में शरीर की आकृति फन उठाए हुए भुजंग अर्थात सर्प जैसी बनती है इसीलिए इसको भुजंगासन या सर्पासन कहा जाता है।

विधि : उल्टे होकर पेट के बल लेट जाए। ऐड़ी-पंजे मिले हुए रखें। ठोड़ी फर्श पर रखी हुई। कोहनियाँ कमर से लगी हुई और हथेलियाँ ऊपर की ओर अब धीरे-धीरे हाथ को कोहनियों से मोड़ते हुए लाए और हथेलियों को बाजूओं के नीचे रख दें। फिर ठोड़ी को गरदन में दबाते हुए  माथा भूमि पर रखे। पुन: नाक को हल्का-सा भूमि पर स्पर्श करते हुए सिर को आकाश की ओर उठाए। जितना सिर और छाती को पीछे ले जा सकते है ले जाए किंतु नाभि भूमि से लगी रहे।
20 सेकंड तक यह स्थिति रखें या अपनी शरीर की  क्षमतानुसार  ! श्वांस हमेशा सामान्य रखते हैं बाद में श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे सिर को नीचे लाकर माथा भूमि पर रखें। छाती भी भूमि पर रखें। पुन: ठोड़ी को भूमि पर रखें। धीरे- धीरे इसका समय बढ़ा कर 3 मिनट 48 सेकेण्ड तक कर लें। 

सावधानी : इस आसन को करते समय अकस्मात् पीछे की तरफ बहुत अधिक न झुकें। इससे आपकी छाती या पीठ की माँस-‍पेशियों में खिंचाव आ सकता है तथा बाँहों और कंधों की पेशियों में भी बल पड़ सकता है जिससे दर्द पैदा होने की संभावना बढ़ती है। पेट में कोई रोग या पीठ में अत्यधिक दर्द हो तो यह आसन न करें।





इसके लाभ :भुजंगासन के अभ्यास से भोजन का न पचना ,गैस ,एसिडिटी तथा पाचन संस्थान को मजबूत करने के लिए यह अदित्तीय आसन हैं !इस आसन से रीढ़ की हड्डी सशक्त होती है। और पीठ में लचीलापन आता है। यह आसन फेफड़ों की शुद्धि के लिए भी बहुत अच्छा है और जिन लोगों का गला खराब रहने की, दमे की, पुरानी खाँसी अथवा फेंफड़ों संबंधी अन्य कोई बीमारी हो, उनको यह आसन करना चाहिए।
इस आसन से पित्ताशय की क्रियाशीलता बढ़ती है और पाचन-प्रणाली की कोमल पेशियाँ मजबूत बनती है। इससे पेट की चर्बी घटाने में भी मदद मिलती है और आयु बढ़ने के कारण से पेट के नीचे के हिस्से की पेशियों को ढीला होने से रोकने में सहायता मिलती है।
इससे बाजुओं में शक्ति मिलती है। पीठ में स्थित इड़ा और पिंगला नाडि़यों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। विशेषकर, मस्तिष्क से निकलने वाले ज्ञानतंतु बलवान बनते है। पीठ की हड्डियों में रहने वाली तमाम खराबियाँ दूर होती है। कब्ज दूर होता है


                                                                डॉ. एस.एल. यादव         
                                                                                    मुख्य चिकित्सक 
                                                                सेंटर फॉर नेचुरोपैथी एंड योग टेक्नोलाँजी 
                                                                                    आई. आई. टी. कानपुर  
Friday, January 22, 2010


Type Questions here:

Saturday, January 9, 2010
                                                                           हमारे उत्पाद 
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आयुवर्धक योग (शक्ति एवं रक्तवर्धक )
मधुमेह नाशक आयुवर्धक योग 
आलस्य ,कमजोरी ,शरीर में दर्द व थकावट नाशक 
आयुवर्धक योग स्त्रियों हेतु (श्वेत प्रदर मासिक सम्बन्धी दोषों हेतु )
आयुवर्धक योग (याददास्त, कम,आलस्य ,कमजोरी ,सिरदर्द  )
आयुवर्धक योग 
Monday, January 4, 2010
                पैरों पर एक सरसरी नजर डालकर उनकी व बॉडी की सेहत के बारे में काफी कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है। जानते हैं, कैसे..
.            हो सकता है, कि शुरुआत में आपको यह एक मजाक लगे, लेकिन यह सच है, कि पैरों से किसी व्यक्ति की सेहत का काफी हद तक अंदाजा लगाया जा सकता है। डॉक्टर्स का कहना है कि,  पैरों के चेकअप के जरिए डायबिटीज से लेकर न्यूट्रिशनल कमी तक का पता लगाया जा सकता है। 

     नाखूनों पर निशान  
          
    नाखूनों को लेकर आने वाली कोई समस्या अक्सर शरीर में किसी कमी की निशानी होती है। नाखूनों पर सफेद निशान होने का मतलब है कि आपके शरीर में आयरन की कमी है या आपको एनीमिया है। ऐसे में नाखूनों की शेप भी बिगड़ जाती है, जो हीमोग्लोबिन की कमी के चलते होता है। ऐसे में नाखून आसानी से टूटने लगते हैं और पैर ठंडे पड़ जाते हैं। थकान महसूस होना, बहुत नींद आना और सिर दर्द वगैरह अनीमिया के कुछ और लक्षण हैं।

     पैरों का फटना
                सही तरह एक्सर्साइज न करने या शरीर में पानी की कमी की वजह से पैर फटते हैं। अगर ऐसा बार-बार होता है, तो इसका मतलब है कि आपकी डाइट में कैल्शियम, पोटाशियम व मैग्निशियम की कमी है। प्रेग्नेंट महिलाओं में ऐसा अक्सर दिखता!

     पैर की चोट का ठीक न होना                                                                                  
                  ऐसा डायबिटीज की वजह से होता है। खून में ग्लूकोज के ज्यादा होने की वजह से पैरों की नर्व्स डैमिज हो जाती हैं, जिस वजह से छोटी-मोटी चोटों व कट्स का पता नहीं चलता। अपने पैरों को ध्यान देखें और किसी भी तरह के कट को नजरअंदाज न करें। डायबिटीज के अन्य लक्षण लगातार प्यास लगना, बार-बार यूरिन जाना, थकान, बहुत भूख लगना और वजन का कम होना वगैरह हैं।

      पैर ठंडे रहना
                 यह शिकायत महिलाओं में खासी कॉमन है और यह थायरॉड प्रॉब्लम का इशारा भी हो सकती है। महिलाओं का बॉडी टेम्परेचर पुरुषों की तुलना में थोड़ा कम होता है, जिस वजह से वे इस समस्या की जल्द शिकार बन जाती हैं। 40 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं में ठंडे पैर होने का मतलब थायरॉड ग्लैंड का कम ऐक्टिव होना है। बता दें कि यह ग्लैंड बॉडी के टेम्परेचर व मेटाबॉलिज्म को कंट्रोल करता है। 

     मोटे व पीले नाखून
                 यह सही है कि उम्र के साथ नाखूनों का रंग बदलता है, लेकिन यह फंगल इंफेक्शन और बिना केयर वाले नाखूनों की निशानी भी है। पैरों में फंगल इंफेक्शन बिना कोई परेशानी से लंबे समय तक पनप सकती है। बाद में नाखूनों में से खराब स्मेल आने लगती है और इनकी रंगत काली होती जाती है।

     बड़े अंगूठे का बड़ा होना
            यह अक्सर गाउट की निशानी है, जो आर्थराइटिस का ही एक टाइप है। यह शरीर में यूरिक एसिड ज्यादा होने की वजह से होता है। शरीर में जमने वाला यूरिक एसिड सुई के आकार व साइज के क्रिस्टल्स में बनता है। 40 व 50 की पार के पुरुष इससे ज्यादा परेशान होते देखे गए हैं।

     पैरों का सुन्न पड़ना
             अगर आप अपने पैर को महसूस नहीं कर पा रहे हैं या उसमें सुइयां चुभने जैसा कुछ अहसास होता है, तो यह पेरिफेरल नर्वस सिस्टम डैमिज होने की निशानी हो सकता है। ऐसा डायबिटीज और अल्कोहल के ज्यादा पीने की वजह से हो सकता है।

     रूखी त्वचा
            त्वचा के रूखे होने को हल्के तौर पर न लें। रूखी और जलन वाली त्वचा कुछ समय में एथलीट फुट जैसी फंगल इंफेक्शन में बदल सकती है। आगे चलकर इससे इंफ्लेमेशन व ब्लिस्टर्स तक हो सकते हैं। 

                                                भारतीय योग शास्‍त्र      

योग शब्द का अर्थ है जुडना, यदि इस शब्द को आध्यात्मिक अर्थ मे लेते है तो इस का तात्पर्य आत्मा का परमात्मा से मिलन और दोनो का एकाग्र हो जाना है। भक्त का भगवान से, मानव का ईश्वर से, व्यष्टि का समष्टि से, पिण्ड का ब्रह्मण्ड से मिलन को ही योग कहा गया है, हकीकत मे देखा जाए तो यौगिक क्रियाओ का उद्देश्य मन को पूर्ण रुप से प्रभु के चरणो मे समर्पित कर देना है । ईश्वर अपने आप मे अविनाशी और परम शक्तिशाली है। जब मानव उस के चरणो मे एकलय हो जात है तो उसे असीम सिद्धि दाता से कुछ अंश प्राप्त हो जाता है, उसी को योग कहते हैं।

चित वृतियों पर नियंत्रण और उस का विरोध ही दर्शन शास्त्र में योग शब्द से विभूषित हुआ है। जब ऎसा हो जाता है और ऎसा होने पर उस व्यक्ति को भूत और भविष्य आंकने मे किसी प्रकार की कोई परेशानी नही होती, वह अपने संकेत से ब्रह्मण्ड को चलायमान कर सकता है।
भारतीय योग शास्त्र मे इसके पांच भेद बताए गए हैं-

  1. हठ योग
  2. ध्यान योग
  3. कर्म योग
  4. भक्ति योग
  5. ज्ञान योग
मूलत: मनुष्य मे पांच मुख्य शक्तियां होती है उन शक्तियों के अधार पर ही योग के उपर लिखे भेद या विभाजन संभव हो सका है। प्राण शक्ति का हठ योग से, मन शक्ति का ध्यान योग से, क्रिया  शक्ति का कर्म योग से, भावना शक्ति का भक्ति योग से, बुद्धि शक्ति का ज्ञान योग से पूर्णत: सम्बन्ध है । वर्तमान काल मे इस विष्य पर जो ग्रन्थ प्राप्त होते है उन मे हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, गोरख संहिता, हठ योग सार, तथा कुण्ड्क योग प्रसिद्ध हैं। पतांजलि का योग दर्शन इस सम्बन्ध मे प्रमाणिक ग्रन्थ माना गया है।

महार्षि पतांजलि ने चित की वृतियों का विरोध योग के माध्यम से बताया है और उनके अनुसार योग के आठ अंग हैं, जो कि निम्नलिखित हैं
१ यम    २  नियम     ३  आसन    ४  प्रणाय़ाम    ५  प्रत्याहार    ६  धारणा    ७ ध्यान  
८ और समाधि



ऊपर जो आठ अंग बताए गए हैं उनमे से प्रथम पांच अंग बाहरी तथा अन्तिम तीन अंग भीतरी या मानसी कहे गए हैं।
  1. यम:- अहिंसा, सत्य,अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह का व्रत पालन ही 'यम' कहा जाता है।
  2. नियम:- स्वाध्याय, सन्तोष, तप, पवित्रता, और ईश्वर के प्रति चिन्तन को' नियम' कहा जाता है।
  3. आसन:- सुविधापूर्वक एक चित और स्थिर होकर बैठने को आसन कहा जात है।
  4. प्राणायाम:- श्‍वास और नि:श्‍वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को प्राणायाम कहा जाता है।
  5. प्रत्याहार:- इन्द्रियों को अपने भौतिक विषयों से हटाकर चित मे रम जाने की क्रिया को प्रत्याहार कहा जाता है।
जब यह पांच कर्त्तव्य सिद्ध हो जातें हैं या इनमे से जब कोई साधक पूर्णता प्राप्त कर लेता है तभी उसे योग के आगे की क्रियायों मे प्रवेश की अनुमति दी जाती है। प्रत्येक साधक को चाहिए कि वह बाह्य अभ्यासों को सिद्ध करने के बाद ही आगे के तीन अभ्यासों मे प्रवेश करें तभी उसे आगे के जीवन मे पूर्णता प्राप्त हो सकती है।
  1. धारण:- चित्त को किसी एक विचार मे बांध लेने की क्रिया को धारण या धारणा कहा जाता है।
  2. ध्यान:- जिस वस्तु को चित मे बांधा जाता है उस मे इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहां से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है।
  3. समाधी:- ध्येय वस्तु के ध्यान मे जब साधक पूरी तरह से डूब जाता है और उसे अपने अस्तित्व  का ज्ञान नही रहता है तो उसे समाधी कहा जाता है। 
Sunday, January 3, 2010
              आमतौर पर यह धारणा प्रचलित है कि संभोग के अनेक आसन होते हैं। 'आसन' कहने से हमेशा योग के आसन ही माने जाते रहे हैं।  जबकि संभोग के सभी आसनों का योग के आसनों से कोई संबंध नहीं। लेकिन यह भी सच है योग के आसनों के अभ्यास से संभोग के आसनों को करने में सहजता पाई जा सकती है।

योग के आसन : योग के आसनों को हम पाँच भागों में बाँट सकते हैं:-
1  पहले प्रकार के वे आसन जो पशु-पक्षियों के उठने-बैठने और चलने-फिरने के ढंग के आधार पर बनाए गए हैं
 जैसे- वृश्चिक, भुंग, मयूर,शलभ , मत्स्य, सिंह, बक, कुक्कुट, मकर, हंस, काक आदि।    
2. दूसरी तरह के आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं जैसे- हल, धनुष, चक्र, वज्र, शिला, नौका आदि।
3. तीसरी तरह के आसन वनस्पतियों और वृक्षों पर आधारित हैं जैसे- वृक्षासन, पद्मासन, लतासन, ताड़ासन आदि।
4. चौथी तरह के आसन विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले माने जाते हैं-जैसे शीर्षासन, एकपादग्रीवासन, हस्तपादासन, सर्वांगासन आदि।
5. पाँचवीं तरह के वे आसन हैं जो किसी योगी के नाम पर आधारित हैं-जैसे महावीरासन, ध्रुवासन, मत्स्येंद्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन आदि
                       यहाँ आसनों के नाम लिखने का आशय यह कि योग के आसनों और संभोग के आसनों के संबंध में भ्रम की निष्पत्ति हो ! संभोग के उक्त आसनों में पारंगत होने के लिए योगासन आपकी मदद कर सकते हैं। इसके लिए आपको शुरुआत करना चाहिए 'अंग संचालन' से अर्थात सूक्ष्म व्यायाम से। इसके बाद निम्नलिखित आसन करें: -

                 आमतौर पर यह धारणा प्रचलित है कि संभोग के अनेक आसन होते हैं। 'आसन' कहने से हमेशा योग के आसन ही माने जाते रहे हैं। जबकि संभोग के सभी आसनों का योग के आसनों से कोई संबंध नहीं। लेकिन यह भी सच है योग के आसनों के अभ्यास से संभोग के आसनों को करने में सहजता पाई जा सकती है।

योग के आसन : योग के आसनों को हम पाँच भागों में बाँट सकते हैं:-
1. पहले प्रकार के वे आसन जो पशु-पक्षियों के उठने-बैठने और चलने-फिरने के ढंग के आधार पर बनाए गए हैं जैसे- वृश्चिक, भुंग, मयूर, 
         शलभ, मत्स्य, सिंह, बक, कुक्कुट, मकर, हंस, काक आदि।
2. दूसरी तरह के आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं जैसे- हल, धनुष, चक्र, वज्र, शिला, नौका आदि।
3. तीसरी तरह के आसन वनस्पतियों और वृक्षों पर आधारित हैं जैसे- वृक्षासन, पद्मासन, लतासन, ताड़ासन आदि।
4. चौथी तरह के आसन विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले माने जाते हैं-जैसे शीर्षासन, एकपादग्रीवासन, हस्तपादासन, सर्वांगासन आदि।
5. पाँचवीं तरह के वे आसन हैं जो किसी योगी के नाम पर आधारित हैं-जैसे महावीरासन, ध्रुवासन, मत्स्येंद्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन आदि

                    यहाँ आसनों के नाम लिखने का आशय यह कि योग के आसनों और संभोग के आसनों के संबंध में भ्रम की निष्पत्ति हो।संभोग के उक्त आसनों में पारंगत होने के लिए योगासन आपकी मदद कर सकते हैं। इसके लिए आपको शुरुआत करना चाहिए 'अंग संचालन' से अर्थात सूक्ष्म व्यायाम से। इसके बाद निम्नलिखित आसन करें:- 
                                                    कामसूत्र और योगासन


(1) पद्‍मासन : इस आसन से कूल्हों के जाइंट, माँसमेशियाँ, पेट, मूत्राशय और घुटनों में खिंचाव होता है जिससे इनमें मजबूती आती है और यह सेहतमंद बने रहते हैं। इस मजबूती के कारण उत्तेजना का संचार होता है। उत्तेजना के संचार से आनंद की दीर्घता बढ़ती है।

(2) भुजंगासन : भुजंगासन आपकी छाती को चौड़ा और मजबूत बनाता है। मेरुदंड और पीठ दर्द संबंधी समस्याओं को दूर करने में फायदेमंद है। यह स्वप्नदोष को दूर करने में भी लाभदायक है। इस आसन के लगातार अभ्यास से वीर्य की दुर्बलता समाप्त होती है।

(3) सर्वांगासन : यह आपके कंधे और गर्दन के हिस्से को मजबूत बनाता है। यह नपुंसकता, निराशा, यौन शक्ति और यौन अंगों के विभिन्न अन्य दोष की कमी को भी दूर करता है।

(4) हलासन : यौन ऊर्जा को बढ़ाने के लिए इस आसन का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पुरुषों और महिलाओं की यौन ग्रंथियों को मजबूत और सक्रिय बनाता है।

(5) धनुरासन : यह कामेच्छा जाग्रत करने और संभोग क्रिया की अवधि बढ़ाने में सहायक है। पुरुषों के ‍वीर्य के पतलेपन को दूर करता है। लिंग और योनि को शक्ति प्रदान करता है।

(6) पश्चिमोत्तनासन : सेक्स से जुड़ी समस्त समस्या को दूर करने में सहायक है। जैसे कि स्वप्नदोष, नपुंसकता और महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़े दोषों को दूर करता है।

(7) भद्रासन : भद्रासन के नियमित अभ्यास से रति सुख में धैर्य और एकाग्रता की शक्ति बढ़ती है। यह आसन पुरुषों और महिलाओं के स्नायु तंत्र और रक्तवह-तन्त्र को मजबूत करता है।

(8) मुद्रासन : मुद्रासन तनाव को दूर करता है। महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़े हए विकारों को दूर करने के अलावा यह आसन रक्तस्रावरोधक भी है। मूत्राशय से जुड़ी विसंगतियों को भी दूर करता है।

(9) मयुरासन : पुरुषों में वीर्य और शुक्राणुओं में वृद्धि होती है। महिलाओं के मासिक धर्म के विकारों को सही करता है। लगातार एक माह तक यह आसन करने के बाद आप पूर्ण संभोग सुख की प्राप्ति कर सकते हो।

(10) कटी चक्रासन : यह कमर, पेट, कूल्हे, मेरुदंड तथा जंघाओं को सुधारता है। इससे गर्दन और कमर में लाभ मिलता है। यह आसन गर्दन को सुडौल बनाकर कमर की चर्बी घटाता है। शारीरिक थकावट तथा मानसिक तनाव दूर करता है।
Saturday, January 2, 2010
  
योग क्या है?
योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहला है- जोड़ और दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुँचना कठिन होगा योग दर्शन या धर्म नहीं, गणित से कुछ ज्यादा है। दो में दो मिलाओ चार ही आएँगे। चाहे विश्वास करो या मत करो, सिर्फ करके देख लो। आग में हाथ डालने से हाथ जलेंगे ही, यह विश्वास का मामला नहीं है।

योग है विज्ञान : 'योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है। योग एक सीधा विज्ञान है। प्रायोगिक विज्ञान है। योग है जीवन जीने की कला। योग एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। एक पूर्ण मार्ग है-राजपथ। दरअसल धर्म लोगों को खूँटे से बाँधता है और योग सभी तरह के खूँटों से मुक्ति का मार्ग बताता है।'-ओशो

जैसे बाहरी विज्ञान की दुनिया में आइंस्टीन का नाम सर्वोपरि है, वैसे ही भीतरी विज्ञान की दुनिया के आइंस्टीन हैं पतंजलि। जैसे पर्वतों में हिमालय श्रेष्ठ है, वैसे ही समस्त दर्शनों, विधियों, नीतियों, नियमों, धर्मों और व्यवस्थाओं में योग श्रेष्ठ है।

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