Tuesday, December 27, 2011
                                                 सर्वांगासन
सारे अंगो का व्यायाम एक साथ हो जाता हैं, इस लिए इसे सर्वांगासन कहते हैं!
बिधि-सबसे पहले किसी समतल जमीन पर पीठ के बल लेट जाए दोनों हाथो को शरीर के साइड में रखते हैं ! दोनों पैरो को धीरे -धीरे ऊपर उठाइये दोनों हाथो को कोहनियों से मोडकर हथेलियों से दबाव डालकर पीठ को सीधा कीजिए !पूरा शरीर गर्दन से समकोण बनाते हुए सीधा रहे !ठोड़ी (चिन ) सीने से लगा रहे !
श्वास -आसन करते समय तथा वापस आते समय श्वास अंदर रोकिये !
आसन कि रुकी हुई अवस्था में श्वास सामान्य रखे !
सावधानियां -इस आसन को झटके के साथ न करें !
गर्दन दर्द में ,आँखों की रोशनी जादा कमजोर हो तो न करें !
रक्त की अशुध्धता में इस आसन का अभ्यास नही करना चाहिए !
उच्च रक्त -चाप ,दिल कि बीमारी यकृत कि समस्या में तथा तिल्ली
बढने पर इस आसन को न करें !
एकाग्रता -चुल्लिका ग्रंथि (थायरायड ग्लेंड्स )या स्वांस प्रक्रिया पर !
विशेष -सर्वांगासन का अभ्यास किसी योग बिशेषज्ञ की देख-रेख में करें !
सर्वांगासन का आधा समय बिपरीतासन मत्स्यासन ,उष्ट्रासन या सुप्त बज्रासन जरूर करें !
लाभ -चुल्लिका ग्रंथि (थायरायड ग्लेंड्स )की क्रियाशीलता बढ़ता हैं जिसके कारण रक्त -संचार,पाचन ,जननेंद्रिय ,नर्वस सिस्टम तथा ग्रंथि -संस्थानों में संतुलन लाता हैं !शरीर का पूर्ण विकास करता हैं दमा,खाँसी ,हाथी पांव ,बवासीर ,प्रजानांग,प्रदर ,मधुमेह ,हाइड्रोसील,की बीमारी को रोकता हैं मेरुदंड तथा गर्दन को शक्ति देता हैं !मष्तिस्क को उचित रक्त पहुंचकर कर मनोबैजानिक बीमारियों को दूर करता हैं !
इस आसन से शारीरिक तापक्रम नियंत्रित रखा जा सकता हैं !




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