Sunday, January 3, 2010
12:42 AM |
Posted by
Dr. Sohan Lal Yadav Chief Consultant(N&Y) IIT KANPUR |
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आमतौर पर यह धारणा प्रचलित है कि संभोग के अनेक आसन होते हैं। 'आसन' कहने से हमेशा योग के आसन ही माने जाते रहे हैं। जबकि संभोग के सभी आसनों का योग के आसनों से कोई संबंध नहीं। लेकिन यह भी सच है योग के आसनों के अभ्यास से संभोग के आसनों को करने में सहजता पाई जा सकती है।
योग के आसन : योग के आसनों को हम पाँच भागों में बाँट सकते हैं:-
जैसे- वृश्चिक, भुंग, मयूर,शलभ , मत्स्य, सिंह, बक, कुक्कुट, मकर, हंस, काक आदि।
2. दूसरी तरह के आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं जैसे- हल, धनुष, चक्र, वज्र, शिला, नौका आदि।
3. तीसरी तरह के आसन वनस्पतियों और वृक्षों पर आधारित हैं जैसे- वृक्षासन, पद्मासन, लतासन, ताड़ासन आदि।
4. चौथी तरह के आसन विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले माने जाते हैं-जैसे शीर्षासन, एकपादग्रीवासन, हस्तपादासन, सर्वांगासन आदि।
5. पाँचवीं तरह के वे आसन हैं जो किसी योगी के नाम पर आधारित हैं-जैसे महावीरासन, ध्रुवासन, मत्स्येंद्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन आदि
यहाँ आसनों के नाम लिखने का आशय यह कि योग के आसनों और संभोग के आसनों के संबंध में भ्रम की निष्पत्ति हो ! संभोग के उक्त आसनों में पारंगत होने के लिए योगासन आपकी मदद कर सकते हैं। इसके लिए आपको शुरुआत करना चाहिए 'अंग संचालन' से अर्थात सूक्ष्म व्यायाम से। इसके बाद निम्नलिखित आसन करें: -
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3 comments:
your blog looks informative if you post regularly.......welcome to blog world
बढ़िया शुरूआत है.....नये साल की हार्दिक बधाई।
इस नए वर्ष में नए ब्लॉग के साथ आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. आशा है आप यहां नियमित लिखते हुए इस दुनिया में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होंगे .. आपके और आपके परिवार के लिए नया वर्ष मंगलमय हो !!
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